शैक्षिक भ्रमण से होता है बच्चों में वास्तविक ज्ञान

छात्रों को नियमित शैक्षिक भ्रमण पर ले जाया जाता है जहाँ पर छात्र खुले वातावरण में शिक्षा को अपने व्यक्तिगत अनुभवों से परिभाषित करते है शैक्षिक भ्रमण के माध्यम  से छात्रों में एक अनुभूति जागृत होती है, जिससे वे भारत की विभिन्नताओं जैसे – इतिहास , विज्ञान  शिष्टाचार और प्रकृति को व्यक्तिगत रूप से जान सकते है इसके अतिरिक्त छात्रों में समूह में रहने की प्रवृति , नायक बनने की क्षमता तथा आत्मविश्वास एवं भाई चारे की भावना प्रबल होती है.बच्चे द्वारा स्कूल में बिताए गए समय में  सबसे रोचक गतिविधियों में से एक होता है भ्रमण। भ्रमण यदि सुनियोजित तरीके से किए जाएँ तो वे सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के लिए बहुत महत्व रखते हैं।योजनाबद्ध भ्रमण, जिसमें बाहर के स्थानों पर जाने के कार्यक्रम शामिल रहते हैं, आमतौर पर स्वयं में सम्पूर्ण होते हैं। वे किसी एक स्थान पर जाने से सम्बद्ध होते हैं और उनका उद्देश्य मुख्य तौर से बच्चों की रुचि और आनन्द को बनाए रखने का होता है। छोटी उम्र के बच्चों के साथ तथ्यों को रिकॉर्ड करने की कोशिश (जैसा कि बड़ी उम्र के बच्चों के साथ किया जाता है) समय बरबाद करने के बराबर है और ऐसा करने की सलाह कोई खास लाभदायक नहीं है। बल्कि बच्चे तो स्वयं, स्वत:स्फूर्त तरीके से सफल यात्रा के विभिन्न पहलुओं की याद ताजा करने, उन पर चर्चा करने, उन्हें ड्रामाई अन्दाज में प्रस्तुत करने को तैयार रहते हैं। इसलिए सैर के बाद का कार्य उन्हें खुश करने वाले स्वाभाविक ढंग से विकसित होना चाहिए। इसमें शिक्षक भी सावधानी से कुछ मार्गदर्शन कर सकते हैं। जिन स्कूलों में इस प्रकार के नियमित भ्रमण सामान्य गतिविधियों का हिस्सा हैं, वे इस प्रकार के उत्प्रेरकों के मूल्य और उपयुक्तता के बारे में काफी आश्वस्त होते हैं। भ्रमण के बाद की जाने वाली गतिविधियाँ इस प्रकार की हो सकती हैं बुलेटिन बोर्ड पर तस्वीरें, स्मृति-चिह्न, आधिकारिक विवरण पुस्तिकाएँ, विभिन्न माध्यमों में किया गया काम, भ्रमण-स्थान से लाई गई सामग्री आदि प्रदर्शित किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए चिड़ियाघर की सैर से बच्चों द्वारा एकत्र बीजों, पंखों, कंकरों, पेड़ों की छाल आदि की मदद से दीवार पर त्रिआयामी सजावटी चित्रपट्टी और कोलाज बनाए जा सकते हैं। विभिन्न सन्दर्भों से सम्बद्ध दक्षताओं का प्रयोग करते हुए कुछ जानवरों के गहराई से किए गए अध्ययन कला तथा शिल्प के लिए बहुत लाभदायक हो सकते हैं। बच्चे काल्पनिक जानवरों की कलात्मक रचना भी कर सकते हैं।हर साल एक “भ्रमण पुस्तिका” बनाई जा सकती है। उसे स्कूल के पुस्तकालय में किसी अलमारी के एक ‘खास’ खाने में प्रदर्शित किया जा सकता है। यदि उसी स्थान या उस जैसे ही किसी अन्य स्थान का भ्रमण फिर से होना है तो इन पुस्तिकाओं को बच्चों के अन्य समूहों के साथ शुरुआती चर्चाओं में प्रयोग किया जा सकता है। समय के साथ ये पुस्तिकाएँ बच्चों की पसन्दीदा पुस्तकें बन सकती हैं। बच्चों द्वारा लिखे गए भ्रमण के वृत्तान्त विस्तृत तो नहीं होंगे मगर इस प्रकार के काम की इच्छा रखने वाले या इसकी काबिलियत वाले बच्चों को प्रोत्साहित तो किया ही जाना चाहिए। यह कर पाने में कुछ कम समर्थ बच्चे उन लोगों को धन्यवाद पत्र लिख सकते हैं जिनकी मदद से यह भ्रमण सम्भव हो पाया। उपयुक्त शीर्षक के साथ कोई तस्वीर या रेखाचित्र कक्षा में दीवार-समाचारपत्र के लिए बनाए जा सकते हैं। भ्रमण-स्थल या स्कूल में वापिस आकर मोबाइल या कैमरे से की गई रिकॉर्डिंग बहुत लाभदायक और सारगर्भित हो सकती हैं। वास्तव में, जिन बच्चों को लिखने में मजा नहीं आता, उन्हें अपने अनुभवों को अपनी ही आवाज में रिकॉर्ड करने में आनन्द आ सकता है। स्वयं को अभिव्यक्त कर पाने, अर्थों में सटीकता आने, शब्दों के इस्तेमाल और प्रश्न कर पाने में बढ़ती आसानी और महारत हासिल करने के साथ आत्म-विश्वास भी बढ़ता है।शिक्षकों द्वारा थोड़े जोश से योजना बना ली जाए तो भ्रमण के बाद रोचक किस्म के काम की गुंजाइश अनन्त हो जाती है। 25 साल का एक पूर्व विद्यार्थी जब यह याद रखता है कि किस प्रकार उसने मछली-घर के एक भ्रमण के बाद कक्षा के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्री से भरकर एक भीमकाय व्हेल का पुतला बनाया था तो मन को सच में सन्तुष्टि मिलती है।

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