जवानों ने जंगल में गुजारी जिंदगी की सबसे खौफनाक रात

उधर खतरा बढ़ रहा था और इधर गोलियां कम पड़ रही थी

डीआरजी और STF थे…इसलिए सुरक्षित बच पाये…CRPF होती तो खतरा और होता

। शुक्रिया अदा कीजिये उपरवाले का…! या यूं कह लीजिये तकदीर अच्छी थी हमारे जवानों की….! नहीं तो क्या होता… सोचकर भी रूह कांप जायेगी आपकी। अपनी जांबाजी से नक्सलियों को चारों खाने चित कर लौट रहे हमारे जवान ….एक ऐसे चक्रव्यूह में घिर गये थे.. जहां से निकल पाना नामुकीन था। …निकल अगर जाते भी..शायद आज कई जवान हमारे बीच होते भी नहीं। लेकिन सलाम उन जवान की जांबाजी को…जिन्होंने ना तो धैर्य खोया और ना ही हिम्मत हारी। मौत पास खड़ी थी.. तो फिर सीना ताने डटे रहे। ना गोलियों से घबराये और ना हा वीराने बीहड़ में रात की परवाह की।

दो दिन चलकर घुसे थे हिड़मा के गढ़ में

तोंडामरका में शनिवार की सुबह 9 बजे से मुठभेड़ शुरू हुई…! लेकिन तोंडामरका तक पहुंच पाना बेहद चुनौतीपूर्ण था… एक आला अफसर ने बताया कि पूरे दो दिन पैदल चलने के बाद हिड़मा के गढ़ में जब जवान पहुंचे थे। ये नक्सलियों का वो किला है…जहां आकर नक्सली खुद को हमेशा महफूज मानते हैं…लेकिन आज वहां जवानों की बूटों की आवाज ने नक्सलियों की नींद उड़ा दी। फिर 150 से ज्यादा नक्सलियों ने गोलियां बरसानी शुरू की। सुबह 9 बजे से दोनों तरफ से गोलियां चलनी शुरू हुई…जो दोपहर बाद 3 बजे के आसपास खत्म हुई। जवानों ने अपनी नजरों के सामने कई नक्सलियों को जमीन पर गिरते देखा और उनके शवों को लेकर भागने के निशां भी बाद में सर्चिंग में मिले।

थकान में बढ़ नहीं पा रहे थे जवान के कदम

मुठभेड़ के बाद जवान बुरी तरह से थक चुके थे..पास एक नक्सली का शव भी था..लिहाजा एक-एक कदम बढ़ाना मुश्किल हो रहा था। इस मुश्किल हाल में नक्सलियों ने जवानों पर हमला बोल दिया। अपने साथियों की मौत से बिलबिलाये नक्सलियों ने बदला लेने के लिए जवानों को चारों तरफ से घेर लिया.. । अचानक हुए इस हमले में तीन डीआरजी के जवान शहीद हो गये.. जबकि एक जख्मी हो गया।

गोलियां भी खत्म हो रही थी

दिन भर तोंडामरका में मुठभेड़ चली.. तो शाम में लौटते वक्त मुठभेड़ शुरू हो गयी। जानकारी के मुताबिक जवानों के पास गोलियां ना के बराबर बची थी .. । सामने से तूफानी रफ्तार में गोलियां बरस रही थी..तो दूसरी तरफ हमारे जवानों को एक-एक गोलियां नाप-तौल कर दागनी पड़ रही थी.. ताकि गोलियां कम ना पड़ जाये। लेकिन बेशक गोलियां कम थी.. लेकिन जवानों में हिम्मत ज्यादा थी.. लिहाजा नक्सली को खदेड़ने में कामयाबी मिली ।

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