छःग ब्यूरो चीफ पी बेनेट(7389105897)
सहायक उपकरण ट्राय सायकल से दिव्यांग श्री कांशीराम साहू का जीवन हुआ खुशहाल

मुंगेली 10 दिसम्बर 2020// श्री कांशीराम साहू वल्द श्री सौखीराम, ग्राम-चातरखार, पोस्ट-निरजाम, जिला-मुंगेली (छ.ग.), आयु-35 वर्ष, अस्थि बाधित दिव्यांगजन हैं। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद श्री कांशीराम साहू शासकीय व निजी नौकरी प्राप्त करने के लिए प्रयास किया, किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। इस बात से वह बहुत दुखी था। वह अपने पैरो पर खड़ा होकर आत्मनिर्भर बनना चाहता था, किन्तु अपनी दिव्यांगता के कारण वह पैसे नहीं कमा पा रहा था। उसने छोटा-मोटा व्यवसाय करने का मन बनाया, जैसे-पान ठेला खोलना, किराना दुकान खोलना, चाय की टपरी खोलना, सब्जी की दुकान खोलना ईत्यादि। परन्तु व्यवसाय करने के लिए न तो उसके पास कोई जानकारी थी, न कोई अनुभव था और न कोई उसके पास पैसे थे। कौन सा रोजगार वह करें इसका चयन करने में उसे बड़ी दिक्कत आ रही थी। उसे कहा से आर्थिक ऋण मिल सकता हैं, इसकी भी जानकारी उसके पास नहीं थी। वह बहुत हताश और निराश हो चुका था। क्योकि वह जानकारी प्राप्त करने के लिए मुंगेली शहर के लिए लोगों से, बैंक के अधिकारियों से और ऋण देने वाले शासकीय विभाग के अधिकारियों से मिलना चाह रहा था, किन्तु उसे लाने ले जाने वाला कोई नहीं था। वह मन ही मन यह सोचता था कि वह दिव्यांग हैं इसलिए उसकी कोई सहायता नहीं कर रहा हैं। वह गांव के एक किराने दुकान में बड़ा दुःखी मन से बैठा हुआ था, तभी उसने देखा कि उसकी तरह अस्थि बाधित एक दिव्यांग ट्रायसायकल में समान लेकर उस किराने दुकान में बेचने आया था। उस दिव्यांग का नाम श्री हंशु यादव था। श्री हंशु यादव से श्री कांशीराम साहू ने पुछा कि वह उस ट्रायसायकल को कहां से कितने रूपये में खरीदा था। श्री हंशु यादव ने श्री कांशीराम साहू से कहा कि वह ट्रायसायकल जिला कार्यालय समाज कल्याण विभाग, जिला-मुंगेली (छ.ग.) से उसे निःशुल्क प्रदान किया गया हैं। इसके लिए केवल दो फोटो, आवेदन पत्र, आधार कार्ड एवं दिव्यांगता प्रमाण-पत्र की आवश्यकता होती हैं। श्री हंशु यादव के इस बात को सुनकर श्री कांशीराम साहू की बांछे खिल उठी और वह समाज कल्याण विभाग का पता पुछकर अगले दिन ही समाज कल्याण विभाग से निःशुल्क ट्रायसायकल प्राप्त कर ली। ट्रायसायकल मिलने के बाद श्री कांशीराम साहू बैंक में सम्पर्क कर कुछ पैसे ऋण लिये और उससे वह मण्डी से कम दाम में सब्जी खरीद कर अपने गांव ले जाकर बेचने लगा। धीरे-धीरे वह बैंक के ऋण को चुका दिया और आज वह अपने पैरो पर खड़ा होकर खुशहाली पूर्वक जीवनयापन कर रहा है
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