धर्म और ईमानदारी आज केवल किताबी शब्द मात्र रह गया, जिसे तोते (जनता) रटते फिरते हैं और मेंढक (राजनेता) टर्राते फिरते हैं: निरंजन वर्मा

छःग ब्यूरो चीफ पी बेनेट(7389105897)

निरंजन वर्मा की कलम से,,,,,,,,,,,
देश में लगातार हो रहे किसान आंदोलन के संबंध में देश की वर्तमान स्थिति के बारे में हमने युवा साहित्यकार एवं समाजसेवी निरंजन वर्मा से उनके विचार जानने चाहे । प्रस्तुत है इस संबंध में उनके द्वारा अभिव्यक्त किए गए विचार
” कहते है, कि राजनीति उनका है काम, जिनका न धर्म कोई न ईमान।

लोग बिलकुल सही कहते हैं और यह वर्तमान देश, सरकार व जनता के व्यवहार को देखकर कह रहा हूँ।

धर्म और ईमानदारी आज केवल किताबी शब्द मात्र रह गया, जिसे तोते (जनता) रटते फिरते हैं और मेंढक (राजनेता) टर्राते फिरते हैं।

धर्म का वास्तविक अर्थ है ऐसे कर्म जिससे दूसरों को सुख मिले, प्रसन्नता मिले और किसी निर्दोष का किसी भी रूप में अहित न होता हो। जबकि अधर्म विपरीत कर्म है धर्म के। इस आधार पर धार्मिक व्यक्ति वह, जो दूसरों के कल्याण व उत्थान के लिए चिंतन व कर्म करता है। धार्मिक व्यक्ति वह जो उस व्यक्ति या संस्था का सहयोग करता है, जो दूसरों के कल्याण में व्यस्त है, जिसके पास स्वयं के लिए सोचने विचारने का समय न हो। धार्मिक व्यक्ति वह जो आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति को उठाने के लिए कर्म करता हो।

लेकिन राजनेता, राजनैतिक पार्टियों को यदि देखता हूँ तो ऐसी एक भी पार्टी नजर नहीं आती, जो धार्मिक हो, धर्मपथ पर हो। सभी व्यापार कर रहे हैं, सभी वैश्य हैं और इनके लिए धंधा ही धर्म है।

लेकिन क्या राजनेता और राजनैतिक पार्टियाँ ही राजनीति कर रहे हैं ? क्या राजनैतिक और अधर्मी उनके समर्थक, चाटुकार और जनता नहीं ?

देखा जाए व्यावहारिक रूप से तो हर वह व्यक्ति, समाज भी राजनैतिक व अधर्मी है जो अधर्म के विरुद्ध नहीं है। हर वह व्यक्ति व समाज राजनैतिक व अधर्मी है जो अन्याय, शोषण, अत्याचार, जनता व देश के साथ हो रहे बलात्कार के विरुद्ध आवाज उठाने की बजाए मूक बघिर होने का ढोंग कर रहा है। वास्तव में ऐसे व्यक्ति व समाज ही सबसे बड़े देशद्रोही और अधर्मी राजनैतिज्ञ हैं। क्योंकि ये अपने ही चुने हुए नेताओं के उत्पातों और अत्याचारों पर मौन धारण करके उनका मनोबल बढ़ा रहे हैं। इनसे अधिक मक्कार,दुष्ट और गिरा हुआ प्राणी व समाज शायद डकैतों, लुटेरों और जहरीले कीड़े मकोड़ों में भी नहीं होता होगा।

लोग कहते है कि आज साधू संत संन्यासी होने का ढोंग करते हैं जबकि राजनीति में लिप्त रहते हैं ।

ऐसे लोगों को किसी मूर्ख ने रटा दिया है कि साधू संन्यासी वह व्यक्ति होता है, जो भजन, भोजन, शयन में मस्त में रहता है। जिसे कोई मतलब नहीं होता देश बिके, जनता लुटे या पूरे देश का बलात्कार होता रहे। ऐसे लोग किसी एक लड़की या स्त्री के बलात्कार पर पूरे देश में कांव-कांव करते घूमेंगे, लेकिन जब भारत माता का ही बलात्कार हो रहा हो, तब मौन धारण कर लेंगे। क्योंकि इन्होने ही चुनकर भेजा था देश को लूटने और देशवासियों का बलात्कार करने के लिए। फिर ढोंग करते हैं कि हमें तो राजनीति से कोई मतलब नहीं, हम तो बस अपने काम से काम रखते हैं।
सदैव स्मरण रखें:
देश का हर वह व्यक्ति राजनीति में स्वतः आ चुका है, जिसके पास आधार कार्ड है, जिसके पास वोटर कार्ड है, जिसके पास पैनकार्ड है, जो टैक्स देता है, जो वोट देता है और जो भारत भूमि में किसी भी प्रकार का क्रय-विक्रय करता है। इसलिए जो यह कहता है कि वह राजनीति नहीं कर रहा, या राजनीति से दूर है, वह दूसरों को ही नहीं, स्वयं को भी मूर्ख बना रहा होता है।जब देश के हर नागरिक के अधिकारों और उसकी नागरिकता का फैसला राजनीति से हीं तय होती है तो कोई कैसे कह सकता है कि उसे राजनीति से कोई लेना-देना या मतलब नहीं ?

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