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समय पर उपचार कराने से ठीक हो सकते हैं बच्चों के हृदय विकार : डॉ गौरव खंडेलवाल
प्रतिवर्ष ढाई लाख बच्चे हृदय विकार के साथ पैदा होते हैं
सीसीएफ की 43 वीं वेबिनार में प्रसिध्द चिकित्सकों ने दिया मार्गदर्शन
भोपाल भारत में प्रतिवर्ष लगभग ढाई लाख बच्चे जन्मजात हृदय विकारों के साथ जन्म लेते हैं लेकिन अज्ञानता वश इनमें से मात्र 10 से 15 प्रतिशत बच्चों का ही उपचार हो पाता है शेष बच्चों का समय पर उपचार नहीं हो पाता और उनके हृदय विकार स्थायी हृदय रोग बन जाते हैं। जबकि समय पर बच्चे के हृदय में छेद या अन्य विकार होने का पता चल जाने पर उसका उपचार करा कर रोग का स्थाई निदान किया जा सकता है । लेकिन हमारे देश में चिकित्सा सुविधाओं या सामाजिक जागरूकता के अभाव में अधिकांश लोग समय पर बच्चों में दिख रहे लक्षणों की अनदेखी करते हैं जिसके कारण बच्चे का उपचार मुश्किल हो जाता है। उक्त विचार चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन एवं राष्ट्रीय सेवा भारती के 43 वें राष्ट्रीय वेबीनार में “कार्डियक रिलेटेड इश्यू इन चिल्ड्रन’ विषय पर बोलते हुए एम्स भोपाल के डिपार्टमेंट ऑफ कार्डियोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ गौरव खंडेलवाल ने व्यक्त किए। इस महत्वपूर्ण वेबीनार को जेपी हॉस्पिटल भोपाल की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ आशा दिक्षित एवं एम्स भोपाल के मेडिकल ऑफिसर डॉ प्रशांत पाठक सहित सीसीएफ़ के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा एवं सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने भी संबोधित किया और वेबीनार में विभिन्न राज्यों से जुड़े हुए बाल अधिकार कार्यकर्ताओं की शंकाओं का समाधान भी किया।
एम्स भोपाल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर गौरव खंडेलवाल ने बच्चों में हृदय रोग की समस्याओं पर विस्तार से समझाते हुए कहा कि बच्चों में तीन प्रकार से हृदय रोग की समस्याएं उत्पन्न होती हो सकती हैं । पहला जन्मजात हृदय विकार, दूसरा किसी इंफेक्शन की वजह से होने वाले हृदय विकार और तीसरा कार्डियो मांस पेशियों में आने वाली कमजोरी के कारण पैदा हुए ह्रदय विकार। उन्होंने कहा कि भारत में प्रति वर्ष ढाई लाख बच्चे ह्रदय विकारों के साथ पैदा होते हैं जिनके हृदय विकार का कारण 80 से 85% मामलों में पता नहीं चल पाता। ऐसे मामलों में गर्भावस्था के दौरान माता के द्वारा ली गई किसी दवा का रिएक्शन, फोलिक एसिड की कमी, शुगर या बीपी का कम ज्यादा होना सहित माता-पिता की उम्र अधिक होना भी बच्चे के हृदय विकार का एक कारण हो हो सकता है । इसलिए गर्भधारण करने के बाद माता को किसी विशेषज्ञ चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही अपना उपचार और टेस्ट आदि कराते रहना चाहिए। विश्व के कई देशों में फीटल कार्डियोलॉजी की सुविधा उपलब्ध है और भ्रूण में हृदय विकार का पता चलने पर गर्भावस्था के दौरान ही उसका उपचार कर दिया जाता है लेकिन भारत में इस तरह की सुविधा ना के बराबर है। उन्होंने कहा कि बच्चों में हृदय विकार के लक्षणों को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए । बच्चे के रोते समय अगर उसका मुंह नीला पड़ता हो या खेलते समय उसकी सांस फूलती है तो उसकी जांच किसी ह्रदय रोग विशेषज्ञ से अवश्य कराई जानी चाहिए। कई चिकित्सक बच्चे को छाती पर स्टेथेस्कोप लगाकर या एक्स-रे करा कर शंका होने पर इको कार्डियोग्राफी करवाकर बच्चे के हृदय विकार का पता लगा लेते हैं । समय पर बीमारी का पता चले जाने से अधिकांश मामलों में बच्चों के हृदय विकारों का उपचार संभव है। बच्चों के हृदय रोगों के उपचार हेतु कई शासकीय योजनाएं भी चल रही है और जागरूक अभिभावक स्वयं भी जानकारी जुटाकर कम खर्च में बच्चे का उपचार करा सकते हैं। डॉक्टर खंडेलवाल ने कहा कि इन बीमारियों को पूरी तरह से समाप्त करना तो संभव नहीं है लेकिन गर्भावस्था के दौरान एमएमआर का वैक्सिनेशन करवा कर, फोलिक एसिड के बैलेंस पर ध्यान देकर और गर्भावस्था में अन्य जांचें करवा कर इन बीमारियों को समय पर पहचान कर बढ़ने से रोका जा सकता है।
माँ का दूध बच्चे के लिए अमृत है : डॉ आशा दीक्षित
मदर मिल्क बैंक एवं उसकी आवश्यकता पर बोलते हुए जेपी हॉस्पिटल भोपाल की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर आशा दीक्षित ने कहा कि बच्चे के लिए मां का दूध अमृत के समान होता है । इसलिए इसके महत्व को समझते हुए जेपी अस्पताल में मिल्क बैंक की स्थापना की गई है उन्होंने कहा कि हर बच्चे को मां का दूध उपलब्ध कराकर बाल मृत्यु दर में 13% से 22% तक की कमी लाई जा सकती है। जिन धात्री माताओं का दूध अपने बच्चे को पिलाने के बाद बच जाता है वे उसे मिल्क बैंक में दान कर अन्य बच्चों के पोषण एवं जान बचाने का पुण्य काम कर सकती है। उन्होंने बताया कि मां के दूध में सभी छह प्रकार के एमिनोग्लोबिन होते हैं जो बच्चे को निमोनिया,टीबी सहित अन्य कई प्रकार की घातक बीमारियों से बचाने का काम करते हैं और मां के दूध में ऐसा प्रोटीन होता है जो बच्चे को आसानी से पच जाता है। इसलिए इसके महत्व को समझते हुए भोपाल के जेपी हॉस्पिटल में मदर मिल्क बैंक की स्थापना की गई है। जहां पर मां के दूध से वंचित बच्चों को बैंक में स्टोर किया गया दूध उपलब्ध कराकर उनका पोषण किया जाता है । धात्री माता से लिए गए दूध को परीक्षण कर पाश्चुराइजेशन किया जाता है और फिर इसका स्टोरेज किया जाता है। इसके अच्छे परिणाम सामने आए और अन्य स्थानों पर इस प्रकार की परिकल्पना को अपनाया जाना चाहिए।