जेजे एक्ट सिर्फ कानून नही भावना प्रधान भी है:-डॉ चौबेसी,

छःग ब्यूरो चीफ पी बेनेट(7389205897)

जेजे एक्ट सिर्फ कानून नही भावना प्रधान भी है:-डॉ चौबेसी,

सीएफ़ की 44 वी ई संगोष्ठी सम्पन्न,,देश के नवचयनित सीडब्ल्यूसी अध्यक्ष सदस्यों ने जानी एक्ट की बारीकियां

तख़तपुर:-किशोर न्याय अधिनियम 2015 देश में प्रचलित अन्य विधियों से पृथक है। यह एक सामाजिक जबाबदेही केंद्रित कानून है इसीलिए इसके क्रियान्वयन में समाज की भागीदारी को विधिक रूप से सुनिश्चित किया गया है।सामान्यतः एक्ट एक विहित प्रक्रिया और साक्ष्य के आधार पर विनियमित होते है लेकिन किशोर न्याय अधिनियम कानूनी परिभाषाओं के समानांतर बालक के सर्वोत्तम हित की बुनियादी अवधारणा पर भी अबलंबित है।यह जानकारी आज चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 44 वी ई संगोष्ठी में फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने दी।संगोष्ठी में मप्र ,छ ग के करीब 35 जिलों के नवनियुक्त बाल कल्याण समिति अध्यक्ष,सदस्य एवं करीब 12 राज्यों के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

डॉ चौबे ने अपने उदबोधन में बताया कि यह अकेला ऐसा कानून है जो समाज की चैतन्य भागीदारी के साथ बालकों के भविष्य को सुरक्षित एवं समृध्द बनाने की मंशा पर काम करता है।उन्होंने स्पष्ट किया कि बाल कल्याण समितियों की भूमिका इस अधिनियम में सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इनके माध्यम से ही बालकों के सर्वोत्तम हित का सिद्धांत समाज मे आकार लेता है।डॉ चौबे ने सभी नवचयनित अध्यक्ष सदस्यों से आग्रह किया कि वे अपने तीन वर्षीय कार्यकाल को अपनी संवेदनशीलता औऱ निर्मलता के साथ बालकों के हित में उपयोग करें।उन्होंने कहा कि सीडब्ल्यूसी में न्यायिक अधिकारियों की जगह समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को न्यायिक शक्तियां देने के पीछे मूल उदेश्य यही है कि यह कानून डी डि फेक्टो नही डी ज्युरे की अवधारणा पर काम करे ताकि सरंक्षण औऱ जरूरतमंद बालकों के रूप में भारत का भविष्य मजबूती से आगे बढ़े।

डॉ चौबे ने जेजे  एक्ट 2015 की सभी प्रमुख धाराओं का सिलसिलेवार प्रस्तुतिकरण करते हुए नए सदस्यों को बारीकी से बताया कि वे कैसे इस कानून के अनुरूप अपने कार्यक्षेत्र  मे बेहतर ढंग से काम कर सकते है।उन्होंने बताया कि बालकों की आयु निर्धारण,फॉस्टर केयर,स्पॉन्सरशिप,फिट पर्सन,फिट फेसेलिटी जैसे मामलों में एकमात्र आधिकारिता बाल कल्याण समितियों की है।इसके अलावा संगोष्ठी में जेजे एक्ट की धारा 32 से 35 धारा 80 से 105 के सबन्ध में भी विस्तार से चर्चा की गई।

डॉ चौबे ने बताया कि पॉक्सो एक्ट में भी अब बालकल्याण समिति की भूमिका बालिकाओं के पुनर्वास,प्रतिपूर्ति से लेकर सहायक व्यक्ति की नियुक्ति के मामलों में बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई है।साथ ही नए गर्भपात कानून में भी समिति की भूमिका को स्पष्ट किया गया है।उन्होंने कहा कि सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं को हमेशा अपने ह्रदय में एक बाल मन को जीवित रखना चाहिये तभी हम सरंक्षण औऱ जरूरतमंद बच्चों के साथ न्याय कर पायेंगे।श्री चौबे ने जोर देकर कहा कि यह कानून केवल लिखित प्रावधानों पर केंद्रित नही है बल्कि इसकी आत्मा ” बालक के सर्वोत्तम हित”की लाइन में छिपी है।इस एक लाइन के साथ हम तभी न्याय कर सकते है जब राग,दुराग्रह या किसी पदीय रुतबे की भावना से परे होकर काम करने का संकल्प मन मे हो।

संगोष्ठी को फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने संबोधित करते हुए सभी नवचयनित सदस्यों से आग्रह किया कि वे बालकों के लिए काम करने के इस दैवीय योग को अपने जीवन की निधि मानकर काम करें क्योंकि यह अवसर हर किसी के लिये नही मिलता है।डॉ शर्मा ने कहा कि तीन साल समन्वय,सह्योग औऱ सद्भावना के साथ काम करके हम अनाथ,बेसहारा,औऱ सरङ्क्षनमद बाल चेहरों को खुशहाल कर सकते है। इस संगोष्ठी में छत्तीसगढ़ के बाल आयोग के पूर्व सदस्य प्रदीप कौशिक, छत्तीसगढ़ शबरी सेवा संस्थान लखनपुर जिला सरगुजा छग के प्रदेश सचिव सुरेन्द्र साहू,डा दीपा रस्तोगी, दीपक तिवारी दमोह प्रदीप चौहान सीहोर, योगेश जैन इंदौर, दीपमाला सैनी दमोह,ए के मुखर्जी, हेमन्त चन्द्राकर, बिलासपुर ओमप्रकाश चन्द्राकर बेमेतरा, देवेन्द्र पांडे मुंगेली, सुदीप गुप्ता छतरपुर, डा दुर्गा त्रीपाठी पन्ना ,सरिता पान्डे पुनम सिन्हा, राजेश सराठे सरगुजा, लता सोनी कवर्धा,, आदित्य खुराना हरियाणा राकेश अग्रवाल कटनी सहित पुरे भारत के बाल अधिकार के सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए और अपनी बात रखें। अंतिम सत्र में सभी का प्रश्नोतर का जबाव दिया गया।ई संगोष्ठी का संचालन सिवनी की पूर्व बालक कल्याण समिति के अध्यक्ष सुश्री आरजू विश्वकर्मा ने किया

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