स्वास्थ्य संस्थान गनियारी अस्पताल लाखों मरीजों के लिए बन चुका है वरदान

*vikas tiwari

एम्स-दिल्ली के डॉक्टरों के 20-साल पहले देखे सपने आज सच होते दिखाई पड़ रहे है।*

*लाखो गरीब-मरीजो के लिए वरदान बन चुका है-जन-स्वास्थ्य-संस्थान गनियारी अस्पताल।*

*ग्रामीण-क्षेत्रों के मरीजो के लिए वरदान बन चुका है,जन-स्वास्थ्य सेवा केंद्र,,अमीर घराने के लोग भी जाने लगे है,,जन-सेवा केंद्र।*

*दिनांक:-15-01-2019*

*करगीरोड-कोटा:-कोटा बिलासपुर मुख्यालय मार्ग में महज 10-किलोमीटर गनियारी जन-स्वास्थ्य केंद्र में गरीब मरीजो के मसीहा जर्मन डॉ.रुडोल्फ विरको को पढ़ा और उनके विचारों को जीवन मे उतार लिया और वो उनके प्रेरणा-स्त्रोत हो गए इसके बाद चारों डॉक्टरों ने सपनों को साकार करने के लिए भारत-भ्रमण पर एक जगह की तलाश करने निकल गए, कई राज्यों के दौरा करने के बाद मध्यप्रदेश-नवनिर्मित राज्य छत्तीसगढ़ के बिलासपुर-जिले के गांवों तक पहुचे ,तो स्वास्थ्य हालात बेहद खराब मिले, 1999-में उन्होंने बिलासपुर जिला के ग्राम-पंचायत गनियारी नामक गाँव मे सिचाई विभाग की खंडहर पड़ी कालोनी को अपना ठिकाना बनाया।*

*इसके लिए बकायदा राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा और राज्य सरकार द्वारा मंज़ूर भी कर लिया गया और महज 1 -हज़ार रुपये की लीज पर सिंचाई विभाग का खंडहर नुमा भवन मिल गया, बिना सुविधा के चारों-दोस्तों ने मिल जुलकर सेवा भाव से काम शुरू किया,समय तेजी के साथ बीतता गया साथ ही मरीजों की संख्या भी बढ़ने लगी परंतु ग्रामीण मरीजों के वजन 44 से 45 किलो देखे तो गांव-पोषण के हालात के बारे में चिंता सताने लगी ,और आदिवासी बाहुल्य ग्रामीण क्षेत्रों में में काम करने की योजना बनाई,धीरे-धीरे अस्पताल में मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी और अस्पताल चल निकला और अस्पताल को नाम दिया गया “जन-स्वास्थ्य-सेवा-सहयोग” जब गनियारी गांव में सेवा का काम शुरू किया गया तो महिलाओ और बच्चों के पोषण तत्व को देख कर अचंभित रह गए,चारों डॉक्टरों ने योजना-बद्ध रूप से कम करने की योजना बनाई और बच्चों के कुपोषण प्रबंधन और रोकथाम पर काम करना शुरू किया, आज की तारीख मे 4-डॉक्टर दोस्तों द्वारा मिलकर बनाई गई जन-सहयोग-सेवा संस्थान छत्तीसगढ़ के दो-जिलो मुंगेली और बिलासपुर के दो-विकासखंड कोटा और लोरमी के आदिवासी बाहुल्य-72 गांवों में ग्रामीण स्वास्थ्य-कार्यक्रम के साथ-साथ कुपोषण पर व्यापक काम कर रही है।*

*कुपोषण-प्रबंधन-कार्यक्रम का नाम फुलवारी दिया फुलवारी-कार्यक्रम 6-माह से 3-साल तक के बच्चों के लिए संचालित कर रहे हैं, इसके पीछे कारण यह है, कि भारत सरकार द्वारा संचालित आंगनबाड़ी कार्यक्रम 3-साल से 5-वर्ष उम्र पूर्ण होने तक के बच्चों के लिए संचालित है जिसमें 6-माह से 3-साल तक उम्र के बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र में नहीं रखा जाता उन्हें “टेक-होम राशन”दिया जाता है, वह राशन (सत्तू आदि का पैकेट) घर के सभी सदस्य द्वारा बांट कर खा लिया जाता है जिससे बच्चों के कुपोषण की रोकथाम नहीं हो पा रही है,और कम समय के लिए आंगनबाड़ी केंद्र खुले रहते है, जिससे कामकाजी माता-पिता रोजी मज़दूरी पर नहीं जा पाते है,इन्ही कमियों को देखते हुए जन- स्वास्थ्य-सहयोग-सेवा-संस्था ने फुलवारी कार्यक्रम चलाया जिसमें 6-माह से 3-साल तक के बच्चों को 7-से 8-घंटे ग्रामीण क्षेत्र, मोहल्ले में एक सुरक्षित जगह पर रखकर उनकी मूल ज़रूरतों का ख्याल रखा जाता है,पौष्टिक संतुलित, पोषाहार (अंडे , तेल डालकर खिचड़ी) खिलाई जाती है ,एवं मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, बौद्धिक विकासों के लिए खेल गतिविधि भी कराई जाती है, ग्रामीण क्षेत्र के कामकाजी लोगो द्वारा अपने बच्चों को फुलवारी केंद्र में छोड़कर काम पर जाते है,(जंगल, खेतीबाड़ी मजदूरी) जिससे आर्थिक लाभ भी होता है, और बच्चों के पोषण में भी सुधार हो रहा है, 6-साल तक के उम्र के जो बच्चे छोटे भाई-बहन की रखवाली करने के कारण स्कूल में दाखिला नहीं ले पाते थे,या स्कूल जाना छोड़ देते थे, वो भी स्कूल जा पा रहे हैं।*

*”जन-स्वास्थ्य-सेवा सहयोग-संस्थान”द्वारा चलाये जा रहे फुलवारी-कार्यक्रम से प्रेरित होकर अन्य राज्यों के कई संगठनों और सरकार ने भी इस कार्यक्रम को देखकर सीख लेते हुए इस काम को शुरू किया है, जिसमे झारखंड, उड़ीसा, मध्यप्रदेश बिहार ,छत्तीसगढ़ भी शामिल है वर्तमान में जन-स्वास्थ्य-सेवा-सहयोग द्वारा संचालित फुलवारी कार्यक्रम से 1200-बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं,दोनों विकास खंडों में फुलवारी केंद्रों की संख्या 102-है ,इस पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा की शुरुआत डॉ.योगेश जैन, डॉ.रमन कटारिया, डॉ. अनुराग भार्गव, डॉ. विश्वरूप चटर्जी ने मिलकर की जो आज पूरे देशमें अनुकरणीय और आदर्श-कार्यक्रम के रूप में स्थापित हो गया है, इस कार्यक्रम को वर्तमान में जमीनी-स्तर पर डॉ. रविन्द्र कुरबूड़े एवं अनिल बामने संचालित कर रहे है।*

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